Monday, May 4, 2015

तू रकीबों की जानिब सरकती रही




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तू रकीबों की जानिब सरकती रही,
मैं सुलगता रहा तू बहकती रही
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मैं तेरे अंजुमन में यूँ ही रात दिन,
बस टहलता रहा तू बिखरती रही
|

तू यूँ ग़ैरों की महफ़िल में हँसती रही
,
मैं तो घुटता रहा तू मचलती रही
|

मैं तो जज़्बातों में ख्व़ाब बुनता रहा,
रफ्ता-रफ्ता ज़फ़ा कर तु छलती रही |


मैं तेरी राहों से शूल चुनता रहा
,
पर तू राहों में राहें बदलती रही
|

मेरे ख़्वाबों की महफ़िल में लौट आओ अब,
मेरी मंजिल यही तू कुचलती रही
|

अब तो ख़्वाबों की मह्फ़िल से लौट आ यहाँ,
चल उसी राह जिस राह चलती रही |

© हर्ष महाजन
212 212 212 212





26th अप्रैल 2009
http://harashmahajan.blogspot.in/search?q=Tu+rakeeboN+ki+jaanib+sarakti+rahi

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