Monday, June 20, 2016

गुफ्तगू करके वो अक्सर मुझको ही छलता रहा

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गुफ्तगू करके वो अक्सर मुझको ही छलता रहा,
राज़ दिल के पूछता बचपन से संग चलता रहा |

आदतन उसने कभी अपनी जुबां खोली नहीं,
ये जिगर उसके हुनर का सोच मैं सलता रहा |

वो तो था मसरूफ इतना मौसमी फितरत लिए,
हर शज़र पर आदतन वो बेल बन चढ़ता रहा |

जाने कितनी बार कातिल चाहतों का था मगर,
मैं तो नींदों से था गाफिल ख़्वाबों में जलता रहा |

हमसफ़र तो था मगर घुंघरू सा बजता ही रहा,
ज़िंदगी भर बनके साहिल शख्स वो खलता रहा |


_____हर्ष महाजन
बहरे रमल मुसम्मन महफूज़
2122-2122-2122-212
*चुपके-चुपके रात-दिन आंसू बहाना याद है |
*यारी है ईमान मेरा यार मेरी ज़िंदगी
*आपकी नज़रों ने समझा प्यार के काबिल मुझे

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