Sunday, June 26, 2016

राज़ अपना......उछाला है उसने

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राज़ अपना.....उछाला है उसने,
अपना घर खुद उजाड़ा है उसने |
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कैसे आँगन में बिछ गये कांटे,
ये शज़र यूँ उखाड़ा है उसने |

दिल में कोई भी गम नहीं था गर,
रिश्ता फिर क्यूँ बिगाड़ा है उसने |

बिखरा घर ऐसे, टूटा ज्यूँ दर्पण,
क्यूँ ज़हर यूँ उतारा है उसने |

“हर्ष” हैरां था खोया होश-ओ-खबर,
इक सफा-ए-ज़िन्द फाड़ा है उसने |


हर्ष महाजन


खफीफ मुसद्दस मखबून महफूज़ मकतू
2122 1212 22

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