Saturday, July 30, 2016

ज़िक्र खुद अपने गुनाहों पे किया करता हूँ



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ज़िक्र खुद अपने गुनाहों पे किया करता हूँ,
कुछ सवालात सज़ाओं पे किया करता हूँ |

जब भी अलफ़ासों से लुट कर मैं गिरा हूँ इतना,
ख़ुद मैं इज़हार ख़ताओं पे किया करता हूँ |


लोग कहते हैं ये शीशे से भी नाज़ुक है दिल,
अब मैं हर बात दुआओं पे किया करता हूँ |


दिल था बेताब सुनूँ अब मैं सदायें उनकी,

पर गिला मैं भी हवाओं पे किया करता हूँ |

अब तो बतला दे मेरा उनको ठिकाना कोई,
ज़िक्र मैं अब भी जफ़ाओं पे किया करता हूँ
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हर्ष महाजन 'हर्ष'

2122 1122 1122 22

Monday, July 25, 2016

अपने होटों पे सदा हम तो दुआ रखने लगे




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अपने होटों पे सदा हम तो दुआ रखने लगे,
बे-वफाओं से भी हम तो अब वफ़ा रखने लगे|

है हुनर चुपके से धड़कन में उतर जाने का बस,
पर जो दुश्मन हैं बहुत दिल में सजा रखने लगे |

ज़िंदगी दी है खुदा ने और दी ये भी अदा ,
गर उठे उँगली नियत पर तो अना रखने लगे |

हम तो थे बेताब कड़कें बिजलियाँ बन के सदा,
पर लबालब खुद को अश्कों में सदा रखने लगे |

हम तो प्यासे थे बहुत, नदिया तलाशी थी मगर,
पर फलक भी बादलों में अब हवा रखने लगे |

थी दुआ उनकी चले जाएँ अभी दुनियां से हम,
हो असर इतना दुआ में हम दुआ रखने लगे |

नफरतें औ साजिशें हम पर फिदा होने लगीं,
ले मुक़द्दर हाथ में हम भी अदा रखने लगे |


हर्ष महाजन
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2122 2122 2122 212
(रमल मुसम्मन मह्जुफ़)

Sunday, July 24, 2016

अबकी चुनावी जंग में हर दाव चलेगा

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अबकी चुनावी जंग में हर दाव चलेगा,
तलवार से या तीर से हर घाव चलेगा |


साँसे भी दुश्मनों की यहाँ घुटने लगेंगी,
झुकने न देंगे न्याय को हर भाव चलेगा |


लगता नहीं है डर हो समंदर में ज़हर भी,
हर शख्स अपनी-अपनी ले के नाव चलेगा |


गलियारों में तो देखना जब आग लगेगी,
तो साफ़-साफ़ चेहरों का ब्हाव चलेगा |


ले लेंगे अबकि छीन हकूकों को हलक से,
मत सोच छोटा-मोटा ‘हरश’ दाव चलेगा |


हर्ष महाजन
221 2121 1221 122
(मुजारी मुसम्मन अखरब मक्फुफ़ मह्जुफ़ )

Sunday, July 10, 2016

तनहा सी ज़िन्दगी में इक बात ढूंढते हैं

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तनहा सी ज़िन्दगी में इक बात ढूंढते हैं,
जो हमको दे गयी गम वो रात ढूंढते हैं |

फुर्सत से दिल को उसने झुलसाया इस तरां से,
ये दिल के तनहा टुकड़े स्वालात ढूंढते हैं |

कैसे हुए वो दुश्मन हम से भी हैं खफा क्यूँ,
किस्मत में तीरगी के हालात ढूंढते हैं |

राहों में धूल दिल में गर्द-ओ-गुबार इतना,
उतरे फलक से कोई बरसात ढूंढते हैं |

वो दिलरुबां हुआ अब यूँ ही था उलझनों में,
इस दोस्ती में उस की नजरात ढूंढते हैं |

बिखरी सी बदलियों में जो चाँद है ज़मीं पर,
शब्-ओ-रोज़ क़ैद उस में ख्यालात ढूंढते हैं |

जादू का फन नहीं ये लफ़्ज़ों का फन है मेरे,
हर नज़्म हर ग़ज़ल में जज्बात ढूंढते हैं |


हर्ष महाजन


221 2122 221 2122
बहरे मज़ारिअ मुसम्मन मक्फ़ूफ़ मक्फ़ूफ़
मुख़न्नक मक़्सूर

Wednesday, July 6, 2016

घर-घर में यहाँ देख ये मंज़र ही मिलेगा

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घर-घर में यहाँ देख ये मंज़र ही मिलेगा,
हर शख्स में नफरत का बवंडर ही मिलेगा |

आँखों से बहे अश्क भी ये सोचते होंगे,
ढूंढेगे नया घर तो वो बंज़र ही मिलेगा |

इतना है कपट शहर में हर बंदा परेशाँ,
हर घर में है कातिल कोई अंदर ही मिलेगा |

अब हो चुके हर शख्स में दर्दों के ज़खीरे,
इस शहर की हर आँख में खंज़र ही मिलेगा |

कैसे रुकेंगे आँखों से अब बहते ये दरिये,
गर उठ गया तूफ़ान समंदर ही मिलेगा |

हर्ष महाजन


221 / 1221 / 1221 / 122
बहरे हज़ज़ मुसम्मन अखरब मख्फूफ़ महजूफ
*दुश्मन न करे दोस्त ने ये काम किया है*

Monday, July 4, 2016

अपनी मंजिल के लिए होश-ओ-खबर खो के चले

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अपनी मंजिल के लिए होश-ओ-खबर खो के चले,
दुश्मनी शौक़ नहीं पर वो मगर बो के चले |

मुब्तिला इश्क में वो....भूल गये सारे अदब,
भूल कर शाख-ए-वफ़ा वो बे असर हो के चले |

वो फलक छूने लगा जौक-ए-सितम जाने ये क्यूँ,
यूँ बिखर हम भी गये वो भी मगर रो के चले |

इश्क शोला तो हुआ......ताप मगर टूट गया,
हम पे बीती भी बहुत और जनम खो के चले |

हैं छुपे घाव मेरे अब न समझ पाये कोई,
रूह जब छोड़ चली जिस्म सभी ढो के चले |


हर्ष महाजन
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मुब्तिला = मसरूफ
जौक-ए-सितम = अत्याचार सहने का शौक़

2122 / 1122 / 1122 / 112
(रमल मुसम्मन मखबून महजूफ)

*हम से आया न गया तुमसे बुलाया न गया | *
*कोई हमदम न रहा कोई सहारा न रहा |*

Friday, July 1, 2016

गल्त-फ़हमी थीं बढीं औ फासले बढ़ते रहे

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गल्त-फ़हमी थीं बढीं औ फासले बढ़ते रहे,
हम मुहब्बत में वो लेकिन दुश्मनी करते रहे |

दिल तो था मजबूर लेकिन आँखे आब-ए-चश्म थीं,
पर कदम बढ़ते रहे उनके सितम चलते रहे |

हर सितम आईने सा उनका आँखों में यूँ छला,
हम भी पहलू में दिया बन जलते ओ बुझते रहे |

इश्क में खुद शूल बन वो सीने में चुभने लगा,
फिर यही गम ज़िंदगी में घुँघरू बन बजते रहे |

कैसे लिख दें दास्ताँ अपने ही लफ़्ज़ों में सनम,
गम समंदर हो चले वो दिल में जो पलते रहे |

हर्ष महाजन

आब-ए-चश्म = आंसू
बहरे रमल मुसम्मन महजूफ
2122-2122-2122-212