Sunday, August 21, 2016

खिजाँ आयी है किस्मत में बहारों का भी दम निकले

पुरानी डायरी से एक ग़ज़ल .....

...

खिजाँ आयी है किस्मत में बहारों का भी दम निकले,
जहाँ ढूँढें हम अरमां को , वहां अरमां भी कम निकले |

हजारों गम हुए दिल में न मुझको राख ये कर दें ,
कहीं इन ज़र्द आँखों से नदी बन के न हम निकले |

तुम्हें लिख-लिख के ख़त अक्सर कभी हम भूल जाते थे,
पुराने ख़त दराजों से जो निकले आज, नम निकले |

किसी की जुस्तजू करके कि खुद को खो चुके हैं हम,
उधर से बेरुखी उनकी इधर दुनिया से हम निकले |

जगह छोड़ी है जख्मों ने कहाँ अब 'हर्ष' सीने में,
कहीं इन सुर्ख ज़ख्मों से न लावा बनके गम निकले |

_________हर्ष महाजन ©

1222 1222 1222 1222

No comments:

Post a Comment