Monday, August 22, 2016

राह में शख्स वो मुस्कराते रहे,

पुरानी डायरी से......एडिट

-----------------नज़्म--------------

राह में शख्स......... वो मुस्कराते रहे,
दूर तक हमको.......वो याद आते रहे ।

हम भी थे अजनबी,वो भी थे अजनबी
तनहा-तनहा सफ़र....हम निभाते रहे।

दूर तक थी दिलों में..खलिश सी बहुत,
जब सफ़र टूटा......आँखें मिलाते रहे ।

ऐसे अनजान ज़ख्मों में....पीड़ा बहुत,
सोचकर अब तलक,  सर खुजाते रहे ।

हम मिलेंगे उसी,  मोड़ पर  सोच कर,
हर शबो रोज़........दीया जलाते रहे ।

हमसफ़र इस सफर से था अनजान यूँ,
पर वो शख्स दिल में घर को बनाते रहे ।

हमने जब जब ज़हन से, था पटका उन्हें,
पर वो ख्वाबों में....जुल्फें सजाते रहे ।

जान कर' हमसफ़र रिश्ता अंजान से,
सोच ये 'हर्ष'........ आंसू बहाते रहे ।

-----------–हर्ष महाजन

. बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम
212-212-212-212

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