Thursday, February 2, 2017

तनहा सी ज़िन्दगी में, वो बात ढूंढते हैं

एक पुरानी कृति एडिट के साथ....

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तनहा सी ज़िन्दगी में, इक बात ढूंढते हैं,
कब चाँद डूबा अपना, वो रात ढूंढते हैं |

कुछ लफ़्ज़ों से हुआ है मेरा वजूद खारिज,
किरदार खेला कैसे वो बात ढूंढते हैं |

मैं हूँ परेशाँ इतना तुम भी तो कम नहीं हो,
फुर्सत से मिलके दोनों जज़्बात ढूंढते हैं |

हरदम रहा तू शामिल, बरबादियों में मेरी,
ये हादसा हुआ क्यूँ, हालात ढूंढते हैं |

ऐ नींद कर सफ़र तू ख़्वाबों की वादियों में,
फिर इश्क की डगर के स्वलात ढूंढते हैं |

हर्ष महाजन


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बहरे मुजारी मुसम्मन अखरब (शिकस्ता )
221-2122 // 221-2122
*इन्साफ की डगर पे बच्चो दिखाओ चल के |
*सारे जहाँ से अच्छा हिन्दूसितां हमारा |
*गाड़ी बुला रही है सीटी बजा रही है |
*ये ज़िंदगी के मेले दुनियां में कम न होंगे |
*ओ दूर के मुसाफिर हमको भी साथ ले ले |
*गुज़रा हुआ ज़माना आता नहीं दुबारा |
*तकदीर का फ़साना जाकर किसे सुनाएँ |