Friday, May 4, 2018

हर कली को अजब शिकायत है

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हर कली को अजब शिकायत है,
इश्क़ करना भ्रमर  की आदत है ।

इश्क़ दरिया है उर समंदर भी,
जब तलक़ मुझमें तू सलामत है ।

गम से उभरा तो मैंने जाना ये,
गर है साया तेरा तो ज़न्नत है ।

किसको किसके लिए है हमदर्दी,
हर तरफ फैली बस अदावत है ।

जब धुआँ अपने घर से उट्ठे तो,
कर यकीं रिश्तों में सियासत है |


हर्ष महाजन
2122-1212-22

Monday, April 30, 2018

उससे नज़रें मिलीं हादसा हो गया ( तरही)

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उससे नज़रें मिलीं हादसा हो गया,
एक पल में यहाँ क्या से क्या हो गया ।
ख़त दिया था जो कासिद ने उसका मुझे,
"बिन अदालत लगे फ़ैसला हो गया" ।

दरमियाँ ही रहा दूर होकर भी गर,
जाने फिर क्यूँ वो मुझसे ख़फ़ा हो गया ।
गर निभाने की फ़ुर्सत नहीं थी उसे,
खुद ही कह देता वो बेवफ़ा हो गया।
दर्द सीने में ऱख राज़ उगला जो वो,
यूँ लगा मैं तो बे-आसरा हो गया ।

हर्ष महाजन
212 212 212 212

अगर दुआएँ मिलीं हार टल तो सकती है (तरही)

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अगर दुआएँ मिलीं हार टल तो सकती है ।
ये राजनीति है किस्मत बदल तो सकती है ।

कहीं चलेगी अगर बात अब मुहब्बत की,
दबी जो दिल में है सूरत निकल तो सकती है ।

ज़ुदा हुआ जो मैं तुझसे बिखर ही जाऊँगा,
मगर बिछुड़ के भी तू दिल में पल तो सकती है।

हवा के  संग चले जो बशर जमाने की,
"मिले न छाँव मगर धूप ढल तो सकती है ।"

महक रहें हैं जो गुल अपनी रंगों-खुशबू पर,
किसी भी भँवरे की नीयत फिसल तो सकती है|

वतन से होगी अगर रहनुमाओं को उल्फ़त,
ये सच है हालते सरहद सँभल तो सकती है।
न पूछा हाल कभी उसने गैर की ख़ातिर,
वो साथ मेरे ज़नाज़े के चल तो सकती है

समझ के भी न रखी दूरी गर हसीनों से,
दिया जले न जले उँगली जल तो सकती है ।

हर्ष महाजन
1212 1122 1212 22

Tuesday, April 17, 2018

ऐ ज़माने अब चला ऐसी हवा

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ऐ ज़माने अब चला ऐसी हवा ,
लौट कर आये महब्बत में वफ़ा ।

दूरियाँ मिटती नहीं अब क्या करें,
कोई मिलने का निकालो रास्ता ।

चिलचिलाती धूप में आना सनम,
गुदगुदाती है तुम्हारी ये अदा ।

ज़ख्म दिल के देखकर रोते हैं हम,
याद आये इश्क़ का वो सिलसिला

तज्रिबा इतना है सूरत देख कर,
ये बता देते हैं कितना है नशा ।

वो लकीरों में था मेरे हाथ की,
मैं ज़माने में उसे ढूँढ़ा किया ।

अश्क़ हमको दरबदर करते रहे,
जब तलक़ था दरमियाँ ये फ़ासला ।

दिल के अरमाँ छू रहे हैं अर्श अब,
आपने जब से दिया है हौंसला ।

वो रकीबों में उलझ कर रह गए,
बेगुनाही की मुझे देकर सज़ा ।

*****
हर्ष महाजन
2122 2122 212
आपके पहलू में आकर रो दिए

Sunday, April 15, 2018

ऐ खुदा मुझको ये होंसिला चाहिए


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ऐ खुदा मुझको ये होंसिला चाहिए,
 किस तरह तू मिलेगा दुआ चाहिए ।

उठ चुका है समंदर में ऐसा भँवर,
कश्तियों को कोई रहनुमा चाहिए ।

गर्दिश-ए-दौरां का हूँ मैं मारा हुआ,
बक्श दे अब तेरा आसरा चाहिए ।

तेरे दर पे झुका हूँ झुका ही रहूँ,
इतनी तौक़ीर की इब्तिदा चाहिए ।

ज़ख्म इतने मिले दर्द शाम-ओ-सहर,
हो असर कोई ऐसी दवा चाहिए ।

चाँद दिखता नहीं बदलियाँ हैं बहुत,
दे झलक ऐसा इक आइना चाहिए ।

तू मुहब्बत करे मैं भी सज़दा करूँ
हमको ऐसा कोई सिलसिला चाहिए ।

गर हुआ महफिलों में कहीं उनका ज़िक्र,
सरफिरों से मुझे फ़ासिला चाहिए । 

ज़िन्दगी में बचा मुक्तसर सा सफर,
प्यार में 'हर्ष' अब इंतिहा चाहिए ।

हर्ष महाजन
212 212 212 212

Sunday, April 8, 2018

ज़ुदा हुआ पर सज़ा नहीं है


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ज़ुदा हुआ पर सज़ा नहीं है,
न ये समझना ख़ुदा नहीं है ।

ज़रा सा नादाँ है इश्क़ में वो,
सबक़ वफ़ा का पढ़ा नहीं है'

दिखाऊँ कैसे मैं दिल के अरमाँ , 
चराग़ दिल का जला नहीं है ।

है दर्द ग़म का सफ़र में अब तक,
कि अश्क़ अब तक गिरा नहीं है ।

न वो ही भूले ये दिल दुखाना,
यहाँ अना भी ख़ुदा नहीं है ।

न देना मुझको ये ज़ह्र कोई,
हुनर तो है पर नया नहीं है ।

लिपट जा आकर तू ऐ महब्बत,
जनाज़ा रुख़्सत हुआ नहीं है ।

---हर्ष महाजन

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बहरे-मुतका़रिब मुज़ाहफ़ की 8 में से एक शक्ल
🌸 वज़्न-- 121 22 -- 121 22
🌸 अर्कान- फ़ऊन फ़ालुन-- फ़ऊन फ़ालुन
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Saturday, April 7, 2018

बसती है मुहब्बतों की बस्तियाँ कभी-कभी


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बसती है मुहब्बतों की बस्तियाँ कभी-कभी,
रौंदती उन्हें ग़मों की तल्खियाँ कभी-कभी ।
ज़िन्दगी हूई जो बे-वफ़ा ये छोड़ा सोचकर,
डूबती समंदरों में कश्तियाँ कभी-कभी ।
गर सफ़र में मन का हमसफर मिले तो सोचना ,
ज़िंदगी में लगती हैं ये अर्जियाँ कभी-कभी ।

उठ गए जो मुझको देख उम्र का लिहाज़ कर,
मुस्कराता देख अपनी झुर्रियाँ कभी-कभी ।
इश्क़ में यकीन होना लाजिमी तो है मगर,
दूर-दूर दिखती हैं ये मर्ज़ियाँ कभी-कभी ।

ज़िन्दगी में दोस्ती का आज भी मुकाम है,
फुरकतें भी लाज़िमी हैं दरमियाँ कभी-कभी ।
बेदिली की आग में वो छोड़ गए थे साथ जब,
सुनता हूँ सदाओं में वो सिसकियाँ कभी-कभी ।
डोलता नहीं हूँ देख शोखियों भरा ये दिल,
पर लुभायें ज़ुल्फ़ की ये बदलियाँ कभी-कभी ।

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हर्ष महाजन
वज़्न--212 1212 1212 1212 
अर्कान-- फ़ाइलुन मफ़ाइलुन मफ़ाइलुन मफ़ाइलुन
बह्र - बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर अक्बूज़ मक्बूज़ मक्बूज़
*कारवाँ गुज़र गया ग़ुबार देखते रहे।*
*मेरा दिल मचल गया तो मेरा क्या कसूर है*
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Thursday, March 29, 2018

वो मेरा हुस्न औ वफ़ा हूँ मैं

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वो मेरा हुस्न औ वफ़ा हूँ मैं,
उसकी यादों में मुब्तिला हूँ मैं ।

चाँद बदली में छुप रहा लेकिन,
माना उसने कि बा-वफा हूँ मैं।

राहे तूफान में फँसी कश्ती,
ऐसी राहों में सँग चला हूँ मैं ।

दिल से नादाँ हूँ ये कहा उसने,
उसकी चाहत का सिलसिला हूँ मैं

तिरछी नज़रों से देखना उसका,
बुझ के हर बार ही जला हूँ मैं । (गिरह)

ग़ैर रखकर किए थे ज़ुल्म बहुत,
मेरे अपनों का ही छला हूँ मैं।

मेरे हाथों की कुछ लकीरों ने,
लिख दिया मुझको इक बला हूँ मैं 

इतना गिर-गिर के संभला हूँ लेकिन,
अब तलक़ कितनों को ख़ला हूँ मैं 

-------हर्ष महाजन
2122 1212 22/122

Tuesday, March 27, 2018

दुश्मन भी अगर दोस्त हों तो नाज़ क्यूँ न हो

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दुश्मन भी अगर दोस्त हों तो नाज़ क्यूँ न हो,
महफ़िल भी हो ग़ज़लें भी हों फिर साज़ क्यूँ न हो ।

है प्यार अगर जुर्म मुहब्बत क्यूँ बनाई,
गर है खुदा तुझमें तो वो, हमराज़ क्यूँ  न हो ।

रखते हैं नकाबों में अगर राज़-ए-मुहब्बत,
जो हो गई बे-पर्दा तो आवाज़ क्यूँ न हो ।

दुश्मन की कोई चोट न होती है गँवारा,
गर ज़ख्म देगा दोस्त तो नाराज़ क्यूँ न हो ।

संगीत की तरतीब में तालीम बहुत है,
फिर गीत ग़ज़ल में सही अल्फ़ाज़ क्यूँ न हो ।

झेला है उसने इश्क़-ए-समंदर में पसीना,
वो ईंट से रोड़ा बना अंदाज़ क्यूँ न हो ।

इंसान की औलाद हूँ, न हिन्दू मुसलमाँ,
है 'हर्ष' मेरा नाम तो फ़ैयाज़ क्यूँ न हो ।

-----------हर्ष महाजन
221 1221 1221 122

Monday, March 26, 2018

अपनी ही ख़ता पर हो परिशां,जो दिल पे लगा कर रोते हैं

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अपनी ही ख़ता पर हो परिशां,जो दिल पे लगा कर रोते हैं,
वो लोग इमां के सच्चे हैं.............पर चैन से यारो सोते हैं ।

होता है फिदा दिल उनका भी,..धनवान वो मन के होते हैं,
होती है अदाएँ अल्लड़ सी.........दिल भंवरों से ही होते हैं ।

अब घुट ही न जाये दम उनका इन ग़ैर सी दिखती राहों में,
जो कीमती लम्हों को अपने.....फुटपाथ पे सोकर खोते हैं ।

अब छोड़ के कैसे जाएं वो कुछ कीमती रिश्तों की खातिर
जो रोज़ बिताते सड़कों पर.....खुशियों के पल जो बोते हैं ।

बर्बाद किये गुलशन इनके....कुछ वक़्ती गुनाहों ने लेकिन
जब पर्दा उठता कर्मों का......फिर अश्क़  बहाकर धोते हैं ।

हर्ष महाजन 

221 1222 22 221 1222 22

Sunday, March 18, 2018

महफ़िल में नशा प्यार का लाना ही नहीं था



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महफ़िल में नशा प्यार का लाना ही नहीं था ।
तो नग़मा मुहब्बत का सुनाना ही नहीं था ।

रौशन किया जो हक़ से तुझे जिसने था दिल में,
वो तेरी निगाहों का निशाना ही नहीं था

कर-कर के भलाई यहाँ रुस्वाई मिले तो,
ऐसा तुझे किरदार निभाना ही नहीं था ।

है डर तुझे हो जाएगा फिर दिल पे वो क़ाबिज़,
सँग उसके तुझे जश्न मनाना ही नहीं था।

होते हैं अगर कत्ल यहाँ हिन्दू मुसलमाँ, 
मंदिर किसी मस्ज़िद को बनाना ही नही था।

डर डूब के मरने का तेरे दिल में था इतना,
तो इश्क़ के दरिया में नहाना ही नहीं था ।

हर्ष महाजन
221 1221 1221 122

Monday, March 5, 2018

तरही ग़ज़ल :ये दिया कैसे जलता हुआ रह गया'

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दरमियाँ अब तेरे मेरे क्या रह गया,
फासला तो हुआ पर नशा रह गया ।

उठ चुका तू मुहब्बत में इतना मगर
मैं गिरा इक दफ़ा तो गिरा रह गया ।

ज़ह्र मैं पी गया, बात ये, थी नहीं,
दर्द ये, मौत से क्यों ज़ुदा रह गया ।

मौत से, कह दो अब, झुक न पाऊँगा मैं,
सर झुकाने को बस इक खुदा रह गया ।

टूट कर फिर से बिखरुं, ये हिम्मत न थी,
इस जहाँ को बताता, गिला रह गया ।

खत जो तेरा पढ़ा चश्म-ए-तर हो गए,
बा-वफ़ा था मैं अब बे-वफ़ा रह गया ।

ज़िन्दगी में चलीं आँधियाँ इस कदर,
'ये दिया कैसे जलता हुआ रह गया'

------------हर्ष महाजन

212 212 212 212

Sunday, February 25, 2018

बहका रहीं हैं उनकी अदाएँ तो क्या करें (तरही)



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बहका रहीं हैं उनकी अदाएँ तो क्या करें,
होने लगीं हैं हमसे खताएँ तो क्या करें ।

रुक-रुक के चल रहीं हैं समंदर में कश्तियाँ,
तूफाँ सी चल रहीं हैं हवाएँ तो क्या करें ।

मरने लगे गरीब यूँ ही अस्पताल में,
जब खत्म हो चुकी हों दवाएँ तो क्या करें ।

इतने मिले हैं ज़ख्म कि दिल छलनी हो गया,
काम आएँ न किसी की दुआएँ तो क्या करें ।

मिलजुल के हमने जितने किये आज तक सफर,
'अब मुस्करा के भूल न जाएँ तो क्या करें ।'

दुश्मन के घर भी जल रहे गर दोस्त के दीये,
यूँ भी बदल रहीं हों फ़ज़ाएँ तो क्या करें ।

हर्ष महाजन

221 2121 1212 212

गम पे उठी ग़ज़ल तो वो दिल में उतर गयी


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गम पे उठी ग़ज़ल तो वो दिल में उतर गयी,
खुशियों का ज़िक्र आया कयामत गुज़र गयी ।
इतनी थी खुशनसीब मेरी ज़िंदगी मगर,
इक प्यार की लकीर न जाने किधर गयी ।
वो छोटी- छोटी बातों पे रहने लगे खफा,
कहने लगे थे लोग कि किस्मत सँवर गयी ।
वो गैर सा हुआ मुझे अफसोस था मगर,
वो अजनबी हुआ मेरी दुनियाँ बिखर गयी ।
निकली जो आह दिल से असर कब कहां हुआ,
दिल से निकल के रूह के अंदर उतर गयी ।
---------

हर्ष महाजन

221 2121 1221 212

महफ़िल में तेरी लौट के आता नहीं कोई

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महफ़िल में फिर से लौट के आता नहीं कोई,
कानून बज़्म के भी निभाता नहीं कोई ।

कितने ही दौर चल चुके ग़ज़लों के अब तलक,
दीवानों सा क्युँ मस्ती में आता नहीं कोई ।

कुछ टोलियाँ बनीं हैं नशा खोरों की यहाँ,
पर शहरियों को तनिक सताता नहीं कोई ।

अब ज़िन्दगी में देख लीं तब्दीलियां बहुत,
पर फासलों का राग सुहाता नहीं कोई ।

अब हो रहीं बगावतें घर-घर में हर तरफ,
पर दिल में छिपी बात बताता नहीं कोई ।

--------------हर्ष महाजन

221 2121 1221 212

Tuesday, February 20, 2018

यूँ ही आंखों से बातें किया कीजिये

...

◆◆◆


यूँ ही आँखों से बातें किया कीजिये,
मेहरबाँ कुछ तो मुझ पे रहा कीजिये ।

हम तो नादान हैं प्यार में कुछ सनम,
कुछ ख़बर मेरे दिल की लिया कीजिये ।

ग़म की ग़ज़लें चलें अश्क़ तुम थाम कर,
लफ़्ज़ों का यूँ मुसलसल नशा कीजिये ।

गर ज़बाँ से मिले तुझको पास-ए-वफ़ा*,
दर्द को इश्क़ से फिर रफ़ा कीजिये ।

यूँ ही डरते हो बदनामी से शह्र में,
इश्क है तो मुकम्मिल किया कीजिये |

ग़म की गहराइयों से जो गुज़रो कभी,
अश्क़ गिरने से पहले पिया कीजिये ।

फ़ासला दरमियाँ गर हमारे रहा,
इश्क़ का फिर ख़ुदा से गिला कीजिये ।

गर जो आँखों से टपके नशा प्यार का,
रुख से बुर्के को फिर तुम ज़ुदा कीजिये ।

ये जुदाई तुझे गर लगे खुशनुमां,
बेझिझक मुझसे तर्क-ए-वफ़ा कीजिये ।

---हर्ष महाजन 'हर्ष'
बहरे-मुतदारिक मसम्मन सालिम
212 212 212 212
*पास-ए-वफ़ा=प्यार में वफ़ादारी का ध्यान रखना
**तर्क-ए-वफ़ा=End of faithfulness/relationship
◆◆◆
1) मेरे रश्के क़मर तू ने पहली नज़र 
जब नज़र से मिलाई मज़ा आ गया

2) हर तरफ़ हर ज़गह बेशुमार आदमी
फिर भी तनहाइयों का शिकार आदमी.