Thursday, July 16, 2015

साज़-ए-दिल बजते रहे महफ़िल-ए-गम चलती रही

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मुझको इस शहर में…ऐसे भी नज़ारे थे मिले,
दिन में कातिल कभी रातों को सहारे थे मिले |

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वो थे क्या दिन सभी इल्जाम जो खुद सर थे लिए,
फर्क इतना सा था बस तुझ से इशारे थे मिले |


जाने कैसा था भँवर दुनियाँ का हम खो से गए,
ये तो किस्मत थी कि दोनों को किनारे थे मिले |


साज़-ए-दिल बजते रहे महफ़िल-ए-ग़म चलती रही,
सारी गज़लों में थे पल संग गुजारे थे मिले |


जब भी तन्हाई में वो.....बन के सहारा थे मिले,|
ज़िन्दगी को यूँ समझ दिन वो उधारे थे मिले ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'

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