Monday, April 11, 2016

गाफिल, तू मुझको ये बता किस-किस पे नज़र है


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गाफिल, तू मुझको ये बता किस-किस पे नज़र है,
चलना मगर, इस राह की, मुश्किल ये डगर है |

इंसान की तहजीब पर दौलत का है दखल ,
पर भूलता है मुक्तसिर उसका ये सफ़र है |

किस-किस करम से जूझता है आदमी यहाँ,
अब क्या किये, ज़ुल्मो सितम, खुद को भी खबर है |

इतना कहर था बादलों का उजड़ी बस्तियां,
टूटा, लगे बरसात का जितना भी सबर है |

जिनके लिए हंसती रही जो आँखें उम्र भर,
छोड़ा हैं, ऐसा गम वहाँ अब तक वो असर है |

०००
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हर्ष महाजन
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